One Nation One Election: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पर जेपीसी की घोषणा ने बढ़ाई राजनीतिक गर्मी

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की घोषणा ने सभी राजनीतिक दलों के बीच गहन बहस छेड़ दी है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को जेपीसी के 21 लोकसभा सदस्यों में शामिल किया गया है। उनके साथ कांग्रेस के अन्य प्रमुख सांसद जैसे मनीष तिवारी, रणदीप सुरजेवाला और सुखदेव भगत भी इस समिति में हैं। समिति में राज्यसभा के 10 सदस्य और सत्ताधारी बीजेपी तथा विपक्षी दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक

इस विधेयक को आधिकारिक तौर पर संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 के रूप में पेश किया गया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने यूनियन टेरिटरीज लॉ (संशोधन) विधेयक भी पेश किया है। यह प्रस्ताव लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का सुझाव देता है। इस प्रक्रिया के तहत संविधान के पांच प्रमुख अनुच्छेदों में संशोधन किए जाएंगे।

हालांकि, बीजेपी इस विधेयक पर गहन चर्चा की बात कर रही है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे संघवाद और राज्यों की स्वायत्तता के लिए खतरा बताया है।

मुख्य बहस के बिंदु

संघवाद पर खतरा:
कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने इस विधेयक को “संविधान विरोधी” करार देते हुए कहा है कि यह राज्यों के संघीय ढांचे को कमजोर करता है।

सरकार का पक्ष:
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनका कहना है कि यह विधेयक प्रशासन में सुधार लाने और चुनावी खर्चों को कम करने के उद्देश्य से लाया गया है।

जेपीसी की संरचना

  • समिति में कुल 31 सदस्य हैं, जिनमें 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा से हैं।
  • बीजेपी को संसद में अपने बहुमत के कारण समिति का नेतृत्व करने का अवसर मिला है।

जेपीसी की भूमिका

समिति को निम्नलिखित जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं:

  1. सांसदों, संवैधानिक विशेषज्ञों और पूर्व चुनाव आयोग के सदस्यों से परामर्श करना।
  2. सार्वजनिक फीडबैक और विधानसभा अध्यक्षों की राय लेना।
  3. विधेयक के प्रावधानों की गहन समीक्षा करना।

समयसीमा

जेपीसी को अपनी रिपोर्ट बजट सत्र के अंतिम सप्ताह तक सौंपनी है। प्रारंभिक रूप से इसे 90 दिनों का समय दिया गया है।

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विपक्ष और समर्थन

  • कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, शिवसेना (उद्धव गुट) और एआईएमआईएम ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह राज्यों की स्वायत्तता के लिए खतरा है।
  • वहीं, वाईएसआर कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी और अकाली दल जैसे बीजेपी के सहयोगी दलों ने इसका समर्थन किया है।

आने वाली चुनौतियां

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन के साथ-साथ अधिकांश राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, चुनाव आयोग को होने वाली प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चुनौतियों को भी सुलझाना होगा।

जैसे ही जेपीसी ने इस विधेयक पर चर्चा शुरू की है, राजनीतिक परिदृश्य में एक गहन बहस की संभावना है। यह विधेयक भारत में केंद्रीकरण और संघवाद के बीच संतुलन की परीक्षा बन सकता है।

डिस्क्लेमर:
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