Supreme Court Hearing on Challenge to Places of Worship Act, 1991: पूजा स्थल अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन शामिल हैं, ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 दिसंबर, 2024 को दोपहर 3:30 बजे सुनवाई शुरू की।

यह अधिनियम 15 अगस्त, 1947 को मौजूद पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप में किसी भी प्रकार के परिवर्तन पर रोक लगाता है। इस मामले की मुख्य याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ 2020 में दायर की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। इसके बाद, इसी तरह की कई अन्य याचिकाएं भी दायर की गईं।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार समय दिए जाने के बावजूद, केंद्र सरकार ने अभी तक अपना जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल स्थित जामा मस्जिद के सर्वे के बाद हुई हिंसक घटनाओं के कारण यह अधिनियम चर्चा के केंद्र में आ गया।

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के निचली अदालतों को आदेश दिया कि वे पूजा स्थलों के स्वामित्व और शीर्षक से जुड़े मामलों में नए मुकदमे स्वीकार न करें और कोई अंतरिम या अंतिम आदेश जारी न करें। इसके अलावा, अदालत ने निर्देश दिया कि जब तक 1991 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता तय नहीं होती, तब तक कोई नया सर्वेक्षण या मुकदमा दायर नहीं किया जाएगा। केंद्र को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।

मुख्य अपडेट

  1. अस्थायी रोक: अदालत ने निर्देश दिया कि नए मुकदमे या सर्वेक्षण न किए जाएं और निचली अदालतें ऐसे मामलों में कोई आदेश न दें।
  2. केंद्र का जवाब लंबित: केंद्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
  3. याचिकाओं की दलील: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह अधिनियम हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को अपने ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने से रोकता है।
  4. मुस्लिम संगठनों का विरोध: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने तर्क दिया कि यह अधिनियम संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे की भावना को संरक्षित करता है।

पूजा स्थल अधिनियम, 1991

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 एक केंद्रीय कानून है, जो 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों की धार्मिक प्रकृति को संरक्षित करने के लिए बनाया गया था। यह ऐसे स्थलों के स्वरूप को बदलने पर रोक लगाता है और उनकी स्थिति में बदलाव के लिए कानूनी कार्यवाही पर प्रतिबंध लगाता है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस अधिनियम से छूट दी गई थी, क्योंकि वह मामला पहले से अदालत में लंबित था। यह अधिनियम संविधान की धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए ऐतिहासिक विवादों को वर्तमान में खींचने से रोकता है।

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